लकड़ी, पत्थर, धातु
हार्ड मटिरीअल डिज़ाइन आईआईसीडी का फ़र्नीचर डिज़ाइनिंग कोर्स है, जो शिल्प और डिज़ाइन उद्योग में अपना कैरियर बनाने के लिए प्रवेश द्वार है। चाहे कोई भारत में धातु, पत्थर या फर्नीचर डिज़ाइन सीखने की इच्छा रखता हो, हार्ड मटिरीयल डिज़ाइन छात्रों की सभी डिज़ाइनिंग ज़रूरतों और आवश्यकताओं को पूरा करता है।
फर्नीचर डिज़ाइनिंग कोर्स में विशेषज्ञता/स्पेशलाईज़ेशन छात्रों को विभिन्न सामग्रियों से परिचित कराती है, जिसमें लकड़ी, धातु और पत्थर शामिल हैं। विशिष्ट फर्नीचर बनाने के पाठ्यक्रम उन्हें तकनीक, उत्पादन प्रक्रियाओं, पारंपरिक ज्ञान, कौशल, वैचारिक और डिज़ाइन विकास से परिचित कराते हैं, जिससे की वे एक समकालीन भारतीय शिल्प संग्रह को विकसित कर सकें। आईआईसीडी में हार्ड मटिरीअल डिज़ाइन सिखाने की अध्ययन कला व्यावहारिक है और इसमें व्यापक तौर पर किया जाने वाला क्षेत्र अध्ययन और पारंपरिक और आधुनिक डिज़ाइन तकनीकों द्वारा शिक्षण शामिल है।
अन्य फर्नीचर डिज़ाइन पाठ्यक्रमों के विपरीत, जो केवल परीक्षणों और ग्रेड के आधार पर प्रदर्शन को मापते हैं, आईआईसीडी में फर्नीचर बनाने वाले पाठ्यक्रमों में नामांकित छात्रों की प्रगति को ट्यूटोरियल, समूह समालोचनाओं, कार्य समीक्षाओं और सेमिनारों के माध्यम से मॉनिटर किया जाता है। सभी छात्रों को व्यक्तिगत विषय मॉड्यूल और बाद के सेमेस्टर में प्रगति के लिए सेमेस्टर के अंत में एक औपचारिक परीक्षा में पास होना होता है, जहां उनसे किसी निर्दिष्ट संदर्भ की दिशा में अपने काम को निर्देशित करने की उम्मीद की जाती है।
आईआईसीडी में ऐसे शिक्षण पर मजबूती से ज़ोर दिया जाता है, जो उत्पाद के कार्य और उपयोग की कड़ी आवश्यकताओं के अलावा सामग्रियों को उनके विभिन्न रूपों में समझने और सामग्रियों और इसकी प्रक्रियाओं से संबंन्धित तर्कों से परे जा कर उत्पाद विकसित करने और सामाजिक और सांस्कृतिक शब्दावली को समझने सेसंबंधित है।
हार्ड मटिरीयल डिज़ाइन में दाखिले
भारतीय शिल्प संस्थान, जयपुर में हार्ड मटिरीयल डिज़ाइन, यानी, धातु/पत्थर/फर्नीचर डिज़ाइन कोर्स में कुल 25 सीटें हैं।
भारत में धातु/पत्थर/फर्नीचर डिज़ाइन में कैरियर संभावनाएं
आईआईसीडी के साथ सभी छात्रों के लिए उज्ज्वल कैरियर की संभावनाएं हैं। यह हैंः- एक डिज़ाइन हाउस में एक शिल्प डिज़ाइनर के रूप में काम करना।
- एनजीओ और अन्य सामाजिक संस्थाओं में एक शिल्प प्रबंधक के रूप में काम करना।
- एनजीओ और अन्य सामाजिक संस्थाओं में एक शिल्प प्रबंधक के रूप में काम करना।
- विभिन्न संस्थानों के लिए शोधकर्ता के रूप में काम करना।
